मडुवा ः
उत्तराखंड में परंपरागत रूप से पैदा की जानी वाली फसल है। इसकी खेती राज्य के चंपावत, पिथौरागढ़, बागेश्वर, अल्मोड़ा व नैनीताल के पर्वतीय हिस्सों तथा गढ़वाल के अन्य पर्वतीय जिलों में हो रही है। यह खरीफ की फसल है इसका उपयोग मुख्यत: जाड़ों में किया जाता है। -
सूखा सहन करने की क्षमता रखने वाली मडुवे की पैदावार प्राचीन समय से ही राज्य के पर्वतीय अंचलों में होती रही है। इसकी खेती ढालू, कम उपजाऊ व बारिश पर आश्रित भूमि पर की जाती है। मडुवा विपरीत परिस्थितियों में भी पैदा किया जा सकता है, यही कारण है कि सिंचाई के साधनों के अभाव वाले क्षेत्रों में किसान इसकी उपज आसानी से कर सकते हैं। -.
मडुआ बच्चों से लेकर वृद्धजनों तक सभी के लिये समान रूप से उपयोगी है। जापान में तो इससे शिशुओं के लिये खास तौर पर पौष्टिक आहार तैयार किया जाता है। उत्तराखंड सरकार ने भी सरकारी अस्पतालों में मरीजों को मडुआ के बने व्यंजन देने की व्यवस्था की थी। कहने का मतलब यह है कि मडुआ को छह माह के बच्चे से लेकर गर्भवती महिलाओं, बीमार व्यक्तियों और वृद्धजनों तक सभी को दिया जा सकता है। इससे उन्हें फायदा ही होगा।
मात्राः
इसमें कैल्सियम, फासफोरस, आयोडीन, विटामिन बी, लौह तत्वों से भरपूर होता है। इसमें चावल की तुलना में 34 गुना और गेंहू की तुलना में नौ गुना अधिक कैल्सियम पाया जाता है। प्रति 100 ग्राम कोदा में प्रोटीन 7.6 ग्राम, वसा 1.6 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 76.3 ग्राम, कैल्सियम 370 मिग्रा, खनिज पदार्थ 2.2 ग्राम, लौह अयस्क 5.4 ग्राम पाया जाता है। इसके अलावा इसमें फास्फोरस, विटामिन ए, विटामिन बी.1 यानि थियामाइन, विटामिन बी.2 यानि रिबोफ्लेविन, विटामिन बी.3 यानि नियासिन, फाइबर, गंधक और जिंक आदि भी पाया जाता है।
रोगो से बचाव ः
कैल्सियम और फास्फोरस हड्डियों और दांतों को मजबूत करते हैं। इसमें कैल्सियम और फास्फोरस उचित अनुपात में होने के कारण यह बढ़ते बच्चों के लिये बेहद लाभकारी होता है।
मधुमेह के रोगियों के लिये तो मडुवा वरदान साबित हो सकता है। इसमें पाये जाने वाले काबोहाइड्रेट जटिल किस्म के होते हैं जिनका पाचन धीरे धीरे होता है और ऐसे में ये रक्त में शर्करा की मात्रा को संतुलित बनाये रखते हैं।
हृदय रोगियों के लिये भी यह बहुत अच्छा भोजन है इससे ब्लड प्रेशर को संतुलित करने में भी मदद मिलती है। इसके सेवन से खून में हानिकारक चर्बी घट जाती है और लाभकारी चर्बी बढ़ जाती है। फाइबर अधिक होने के कारण भी इसका खाने से कोलस्ट्राल कम करने में मदद मिलती है। इससे बवासीर के रोगियों को भी फायदा होता है। क्षारीय अनाज होने के कारण कोदा का नियमित सेवन करने वाले व्यक्ति को अल्सर नहीं होता है। अल्सर के रोगियों को मडुवा के बने भोजन का नियमित सेवन कराने से लाभ मिलता है। लौह अयस्क होने के कारण मडुवा खून की कमी भी दूर करता है। आपने चिकित्सकों के मुंह से अक्सर सुना होगा कि पहाड़ी लोगों का हीमोग्लोबिन काफी अधिक होता है। उसका कारण ये मडुआ ही है। इसके सेवन करने वाले को कभी एनीमिया नहीं हो सकता। यहां तक कि यह कैंसर जैसे रोग की रोकथाम में लाभकारी है। यहीं नहीं इससे जल्दी बुढ़ापा नहीं आता। चेहरे पर झुरियां देर से पड़ती हैं।
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