राजी-
(बनरावत,बनराउत,बनरौत) या जंगल के राजा के नाम से जाना जाता है। राजी जनजाती उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जनपद के धारचूला,कनाली छीना एवं डोडीहाट विकास खण्डों के गांवो चिपलथड़ा,माना गौथा विखा, काखोला, चौराणी, कनाकन्याल और चम्पावत व कुछ संख्या में नैनीताल में निवास करते हैं।
ये लोग प्राचीन काल से ही जंगलों में निवास करते हैं। लेकिन अब ये झोपड़ियों में निवास करते है। अपने अवास को ये रौत्यूडा कहते हैं। ये मांस कंद द फूल, मंडुवा,मक्का, दाल, सब्जी, भट,मछली, जंगली फल का सेवन करते हैं। ये हिन्दू धर्म को मान्ते हैं। ये कद में छोटे तथा चपटे मुख वाले होते हैं। इनकी भाषा तिब्बती और संस्क्ततत शब्दों की अधिकता पायि जाती है. ये बोलचाल की भाषा में कुमाऊंनी भाषा का प्रयोग करते हैं।
विद्धानों का मत है कि प्राचीन काल में गंगा पठार में पूर्व से लेकर मध्य नेपाल तक के क्षेत्र में अग्नेयवंशीय कोल-किरात जातियों का निवास था। वर्तमान में इन्हीं के वंशज राजी के नाम से जाने जाते हैं।
सामाजीक व्यवस्था-
विवाह इनमें दो परिवारों के बिच एक समझौता माना जाता है। ये अपने गोत्र में विवाह नहीं करते हैं। विवाह के पूर्व मांगजांगी व पिंठा संस्कार सम्पन्न होता है। इन्में बाल विवाह भी होता हैं।
इनमें वधू मूल्य का प्रचलन है, विवाह के बाद पति अपने ससुर के घर रहने लगता है।
ये देवी-देवता पहाड़ की चोटी, बाघनाथ. मलैनाथ, गणनाथ, सैम, मलिकार्जुन, छुरमल आदि को पूजते हैं। इनमें जीस स्थान पर किसी की मृत्यु हो जाती है उस स्थान पर उसके बाद कोई नहीं रहता है। मृत्यु के बाद मिर्तक को गाडने और जलाने की परम्परा हैं।
इनके कुछ परिवार अभी भी घुमक्कड़ी अवस्था में जीवनयापन कर रहे हैं, लेकिन ज्यादातरलोग झुमविधि से थोड़ी बहुत किर्षि करने लगे है। अभाव एवं कुपोषण के कारण इनकी संख्या दिनो-दिन घट रही है।
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