कालू सिंह महरा
हम जब भी उत्तराखंड की बात करते है तो हमारे जहन में देवी,देवता की भूमि ऋषी मुनियो साधु सनाशियो की धरती का जीकर आता। परन्तु हमारा ये सूंदर और सांत दिखने वाला उत्तराखंड की धरती को शूरवीरो और देश भक्तो की जननी भी कहा जाता है
आज मे उस देश भक्त के बारे मे बात कर रहा हूँ जिसे उत्तराखंड की धरती का प्रथम स्वातंता सेनानी होने का गौरव हासिल हुआ हैं ,
उत्तराखडं के इस प्रथम सेनानी का जन्म 1831 में वर्तमान चम्पावत जिले के लोहाघाट के पास स्थित विसुड़ गांव में हुआ था।
कालू महरा ने 1857 के क्रांति के दौरना कुमाऊं छेत्र में गुप्त तरीके से क्रांतिवीर नामक संगठन बनाकर अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन चलाया था। उस समय कुमाऊं के कमिस्नर हैनरी रैमजे थे।
उन्होने कुमाऊनी लोगों और अन्य पहाड़ी लोगों को अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित कराना ,और पहाड़ी क्षेत्र को कुमाउनी लोगों को वापस कर दिया जाएगा और तरई (सादे क्षेत्र) अवध द्वारा लिया जाए की मांग राखी। कलू महारा ने स्थानीय लोगों को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संगठित किया।
उन्होंने कुमाऊं के काली कुमाऊं क्षेत्र में सक्रिय क्रांतिवीर नामक संगठन का नेतृत्व किया।और कलु महारा ने आनंद सिंह फर्टीयल, बिशन सिंह खरायत और कई अन्य लोगों सहित चंपावत क्षेत्र के कई अन्य नेताओं का समर्थन प्राप्त किया।
इनकी मृत्यु 1906 में हुई।
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