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Saturday, April 1, 2017

भीम शिला के कारण त्रासदी को जन्म देने वाली आपदा की दिशा तथा वेग काफी मंद पड़ गए।

 BHEEM SHILA KEDARNATH  UTTARAKHAND 

धाम की यात्रा का सनातन धर्म में बहुत माहात्म्य है। ये वही चार धाम हैं, जिनकी महिमा आदि शंकराचार्य ने स्थापित की थी। किंतु उत्तराखंड के चार धामों तथा द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री केदारनाथ की महत्ता ही सर्वाधिक अलग है। वर्ष 2013 में आई भयानक आपदा ने शिव के इस धाम में महाविनाश लीला की थी किंतु श्रद्धालुओं की आस्था और भी बलवती हो गई। इस आस्था को पहले से अधिक बढ़ाने में योगदान दिया उस दिव्य भीम शिला ने, जिस कारण त्रासदी को जन्म देने वाली आपदा की दिशा तथा वेग काफी मंद पड़ गए।

आश्चर्य कि एक शिलाखण्ड कैसे महाआपदा के रुख को बदलने के लिए श्री केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे आ खड़ा होता है। इससे भी अधिक विस्मयकारी तथ्य ये कि उस शिला का आकार मंदिर की चौड़ाई के बिल्कुल बराबर है, जिससे मंदिर किसी विशेष क्षति का शिकार हुए बिना अपनी जगह मजबूती से अवस्थित है।



इस शिला को वर्ष 2013 की आपदा के पश्चात भीम शिला के रूप में ही मान्यता मिल गई। इस पर एक कथा भी प्रचलित हो गई है कि स्वयं भगवान शिव के परम भक्त और धर्मराज युधिष्ठिर के भ्राता भीम ने अपने आराध्य के मंदिर को किसी प्रकार की हानि न होने देने के लिए ये शिला यहां स्थापित कर दी। श्री केदारनाथ धाम पहुंचे सभी श्रद्धालु इस दिव्य शिला का भी दर्शन करते हैं। मंदिर के अर्चक और समिति के सदस्य इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि अगर ये शिला नहीं आयी होती तो मंदिर को बर्बादी से बचा पाना नामुमकिन था। स्वयं आर्कियोलॉजिकल विभाग भी इसके पीछे किसी चमत्कार से इंकार नहीं करता। आखिर इस दिव्य शिला का आपदा के दौरान कैसे प्राकाट्य हुआ, इसे अभी भी नहीं जाना जा सका है। हां, आस्थावान ये जरूर मानते हैं कि स्वयं भगवान शिव की प्रेरणा से ये शिला वहां स्थापित हुई ताकि मंदिर की महिमा पूर्ववत संरक्षित रहे...
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