कुमायूं क्षेत्र अश्विन मास की संक्रान्ति 17 सितम्बर को खतडुवा त्योहार मनाया जाता है। यह पशुआं का त्योहार है। इस दिन गाय व अन्य पशुआें की सेवा की जाती है।
खतडुवा के दिन लोग गांव से बाहर होली की जीर की तरह अधिक शाखअोंवाले चीड़ या अन्य पेड़ को काट कर गाड़ देते हैं। उसके आस पास पिरूल या सूखी घास-फूल का ढेर जमा कर देते हैं। इसे ही खतडुवा कहा जाता है।
इस खतडुवा को अश्विन संक्रांति के दिन जलाया जाता है। चिराग के माध्यम से आग को घर लाते हैं माना जाता हैं। कि खतडुवा जलने के साथ ही पशुऔं के समस्त अनिष्ट भस्म हो जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में इसे गै त्यार गायों का त्योहार भी कहा जाता हैं।
खतड़ुआ शब्द की उत्पत्ति “खातड़” या “खातड़ि” शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है रजाई या अन्य गरम कपड़े. गौरतलब है कि भाद्रपद की शुरुआत (सितम्बर मध्य) से पहाड़ों में जाड़ा धीरे-धीरे शुरु हो जाता है। यही वक्त है जब पहाड़ के लोग पिछली गर्मियों के बाद प्रयोग में नहीं लाये गये कपड़ों को निकाल कर धूप में सुखाते हैं और पहनना शुरू करते हैं. इस तरह यह त्यौहार वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद शीत ऋतु के आगमन का परिचायक है। इस त्यौहार के दिन गांवों में लोग अपने पशुओं के गोठ (गौशाला) को विशेष रूप से साफ करते हैं. पशुओं को नहला-धुला कर उनकी खास सफाई की जाती है और उन्हें पकवान बनाकर खिलाया जाता है।
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