बालेश्वर मंदिर चंपावत जिले का एक खूबसूरत तीर्थस्थान है। बेजोड़ स्थापत्य कला और खजुराहो शैली में बना बालेश्वर मंदिर समूह | दरअसल यह मंदिरों का समूह है, जिसका निर्माण चंद वंश ने करवाया था। ये मंदिर हिंदू देवी बालेश्वर, रत्नेश्वर और चंपावती दुर्गा को समर्पित है।
नगर की मुख्य सड़क से मात्र सौ मीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर शिल्प का बेजोड़ नमूना है। 12 वीं सदी में कत्यूरी शासकों द्वारा निर्मित बालेश्वर मंदिर समूह अपने समय में देश में प्रचलित सर्वोत्तम शिल्प शैलियों की अनूठी मिशाल है।
मंदिर के प्रवेश द्वार से पहले चार खंभों पर टिके मंडप इसको अलग ही रूप प्रदान करते हैं। मंडप की उल्टी छतों पर नृत्य करती अप्सराओं की मूर्तियां निर्मित की गई हैं। मंदिर के मंडप और छत पर की गई नक्काशी इसकी खूबसूरती में और भी ईजाफा कर देती है।.
मूल रूप से इसे शिव का मंदिर माना जाता है। मंदिरों के समूह बालेश्वर परिसर में श्रृंगार की देवी चंपा व बाली, सुग्रीव सहित अन्य मंदिर भी हैं। जानकारों के मुताबिक बलुआ व ग्रेनाइड किस्म के पत्थरों से निर्मित मंदिर समूह की छतें संकुल पर्वतों की भांति निर्मित हैं। शिखर के ठीक नीचे गर्भ गृह बनाये गये हैं। मंदिरों में बाहरी तथा भीतरी दीवारों पर सुंदर कलात्मक मूर्तियां बनाई गयी हैं।
इस मंदिर के समीप रानी नोल है जिस में आज भी स्वच्छ साफ पानी निकलता है जो यहा के लोगो की प्यास भुझता है
मंदिर के प्रवेश द्वार से पहले चार खंभों पर टिके मंडप इसको अलग ही रूप प्रदान करते हैं। मंडप की उल्टी छतों पर नृत्य करती अप्सराओं की मूर्तियां निर्मित की गई हैं। मंदिर के मंडप और छत पर की गई नक्काशी इसकी खूबसूरती में और भी ईजाफा कर देती है।.
मूल रूप से इसे शिव का मंदिर माना जाता है। मंदिरों के समूह बालेश्वर परिसर में श्रृंगार की देवी चंपा व बाली, सुग्रीव सहित अन्य मंदिर भी हैं। जानकारों के मुताबिक बलुआ व ग्रेनाइड किस्म के पत्थरों से निर्मित मंदिर समूह की छतें संकुल पर्वतों की भांति निर्मित हैं। शिखर के ठीक नीचे गर्भ गृह बनाये गये हैं। मंदिरों में बाहरी तथा भीतरी दीवारों पर सुंदर कलात्मक मूर्तियां बनाई गयी हैं।
इस मंदिर के समीप रानी नोल है जिस में आज भी स्वच्छ साफ पानी निकलता है जो यहा के लोगो की प्यास भुझता है
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