देव भूमि उत्तराखंड की संस्कृति, खान-पान और दैवीय स्थलों और उत्तराखण्ड के टूरिज्म का परिचय उत्तराखण्ड दर्शन के माध्यम से !

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Sunday, April 2, 2017

ऐड़ी धाम  शक्तिपीठ (AidiDham shaktipith)

ऐड़ी धाम  शक्तिपीठ (AidiDham shaktipith)
ह मंदिर टनकपुर से 25 कि,मी दूर अवस्थित है इस मंदिर की बनावट अन्य मंदिरो से भिन्न है जिसमें छत और कलश नहीं है इसमें धनुश –वाण, ित्रशूल इकठठे है ऐड़ी को अर्जुन का अवतार तथा व्यान को धर्मराज युधिष्टिर का अवतार मानते है मान्यता है कि पांडव की तपोभूमि होने से भगवती व्यान, देव ,ऐड़ी ने तुर्क आक़मणकारी को जिसे माल का भराडा कहते है को रोका पांडवो ने व्यानधुरा में अज्ञातवास के समय भगवती की आराधना की ओर अस्त्र् शस्त्रों को इसी स्थान पर छिपाया भीम ने कीचक का वद्य भी इसी क्षेत्र् मे किया था दस क्षेत्र् में मुगल कालीन लेख भी मिला है ऐड़ी व व्यान राजांशी देव के रूप में पूजयनीय है और न्याय के प्रतीक माने जाते है इसकी कई शाखायें है एक शाखा चम्पावत से 3 किमी, चम्पावत-ललुवापानी मोटर मार्ग से मात्र् 1.50 किमी पर है तथा एक अन्य शाखा गहतोडा फटक् शिला के नाम से सेन धुरा में वस्थित है



और इनकी ही एक शाखा चम्पावत जिले से लगभग 40  कि,मी और मैंन बाजार लोहाघाट से ३० कि,मी कि दूरी पर व्यस्थित है जन मानस में ऐड़ी की बहु चर्चित महिमा बहुत रही है यहाँ ऐड़ी कि जो साखा व्यस्थित है यह ऐड़ी धाम आस्था का केन्द्र और विभिन्न प्रकार के वन्य जन्तुओं से भी भरा पूरा रहता है यह मंदिर मनोहारी सौन्दर्य से चारों ओर बिखरा प्राकृतिक सौंदर्य हर तरफ काफी पेड़ पौधे और हरा भरा जंगल है ! समुद्रतल से लगभग कई हजार फीट कि ऊंची धारनुमा चट्टानी पहाड़ पर बना है जिसकी प्रधान पीठों में गणना की जाती है इस ऊंची चोटी पर अनादि काल से स्थित ऐड़ी का मंदिर नवरात्रियों मैं देवभूमि उत्तराखंड में स्थित अनेकों देवस्थलों में दैवीय-शक्ति व आस्था के अद्भुत केंद्र बने ऐड़ी धाम की विशेषता ही कुछ और है। जहां अपनी मनोकामना लेकर लाखों लोग बिना किसी नियोजित प्रचार व आमंत्रण के उमड़ पड़ते हैं, जिसकी उपमा किसी भी लघु-कुंभ से दी जा सकती है।

यहाँ कि सौन्दर्यता
यह मंदिर मनोहारी सौन्दर्य से चारों ओर बिखरा प्राकृतिक सौंदर्य हर तरफ काफी पेड़ पौधे और हरा भरा जंगल है !समुद्रतल से लगभग कई हजार फीट कि ऊंची धारनुमा चट्टानी पहाड़ के दक्षिणी छोर पर रेंचुला का मंदिर है जिसकी प्रधान पीठों में गणना की जाती है इस ऊंची चोटी पर अनादि काल से स्थित ऐड़ी का मंदिर व वहां के रमणीक दृश्य तो स्वर्ग की मधुर कल्पना को ही साकार कर देते हैं। नीले आकाश को छूती शिवालिक पर्वत और गगनचुम्भ्ी पेड़ पौधे के साथ-साथ यहाँ कि ठंडी हवाए चाहे गर्मी का मौसम क्यों ना हो अपनी ओर आकर्षित किए बिना नहीं रहते, इस मंदिर की बनावट अन्य मंदिरो से भिन्न है और इस मंदिर मैं धनुश –वाण, ित्रशूल इकठठे और कई बड़ी -२ घंटिया भी है नवरात्री के समय इन घंटियों कि धव्नि से भक्तो मैं चार चाँद लग जाते है, और भक्तों के बीच एक अलिखित अनुबंध की साक्षी ये सफेत रंग के ( लिसान ) आस्था की महिमा का बखान करते हैं।

मन्नत के लिए मागी जाती है दुवायें
यह ऐड़ीधुरा धाम तीन गाँव रैघाव, लुवाकोट, बैड़ा और पाडासो सेरा के लोगो का बहुत बड़ा धाम माना जाता है वैसे तो यहाँ कई गाँव से लोग आकर मन्नते मांगते है और पूजा अर्चना करते है, बहुत लम्बे अरसे से चली आ रही पर्था के अनुसार रैघाव, लुवाकोट, बैड़ा और पाडासो सेरा वाले मिलकर नवरात्री के। नवमी को डोल ले जाते है जिसमे ( जिनको ऐड़ी का रूप माना जाता है ) ऐड़ी के डांगर को ले जाया जाता है नवरात्री के। नवमी के शाम को ये तीन- चार गाँव के लोग मिलकर डोल के साथ ऐड़ीधुरा धाम पहुचंते है फिर वहा रात भर जागर गाया जाता और ढोल नगाड़े बजते है और साथ-साथ आग जलाई जाती है जिसको ( धूनी ) कहा जाता है फिर ढोल बजा कर डांगर ( धूनी ) के चारो तरफ चक्कर लगाते है कई लोगो का दुख, दर्द, पीड़ा दूर करते है और ये ऐड़ी अपने आप मैं न्याय के प्रतीक माने जाते है यह ऐड़ी मंदिर ऊंची धारनुमा चट्टानी पहाड़ के ऊपर बना सबको अपनी ओर आकर्षित किए रहता है। हिंदू हो या मुस्लिम, सिख हो या ईसाई-सभी एड़ी की महिमा को मन से स्वीकार करते हैं। देवभूमि उत्तराखंड कुमाऊं के देश के चारों दिशाओं में स्थित ऐड़ी का यह शक्तिपीठ सर्वोपरि महत्व रखता है कहा जाता है कि जो भक्त यहाँ सच्ची आस्था लेकर ऐड़ी की दरबार में आता है, कुछ दुख, दर्द तो वैसे ही दूर हो जाता है और उनकी मनोकामना जरुर साकार होती है अगर मनोकामना पूरी होने पर फिर मंदिर के दर्शन व आभार प्रकट करने भक्त-गड़ दुबारा दर्शन के लिए आने कि मान्यता भी है। जब ऐड़ी धाम मैं भक्त-गड़ समूह ( डोल ) लेकर लंबी कतार मैं चिंता किए बिना जोर-जोर से जयकारे लगाते लोगों की श्रध्दा व आध्यात्मिक अनुशासन की अद्भुत मिसाल यहां बस देखते ही बनती है। कुछ जंगल में मंगल सा अनोखा दृश्य उपस्थित करते हैं। पूरी रात मंदिर में अद्भुत दृश्य के साथ अपनी मन्नते मागी जाती है I लेकिन कुछ समय से इस रात्रि मैं होने वाले मेले का आयोजन दिन मैं करने का सुझाव रखा जा रहा है क्योकि रात के लिए यहाँ आना-जाना या छोटे २ बच्चो के साथ आना उपुक्त नही है,
पहुंचने के साधन
और ऐड़ी की एक शाखा यह मंदिर मनोहारी सौन्दर्य से चारों ओर बिखरा प्राकृतिक सौंदर्य हर तरफ काफी पेड़ पौधे और हरा भरा जंगल है यहाँ पहुचने के लिए उत्तराखंड के चम्पावत जिले से लगभग ४० कि,मी और मैने बाजार लोहाघाट से ३० कि, मी दूर व्यस्थित है यह धाम सड़क से लगभग ३, ४ कि,मी दूर है सड़क के बाद लोग पैदल चढाई चढ़कर पहुँचते थे तब यहाँ तक पहुंचने के लिए मोटर मार्ग या सड़क का कोई प्रबन्ध नही था लेकिन अब यहाँ आने वाले भक्तो के लिए सड़क का प्रबन्ध कर लिया गया है अब हम अपने ट्रांसपोर्ट के माध्यम से भी ऐड़ी धाम पहुँच सकते है, उत्तराखंड के चम्पावत जिले के उन गिने-चुने स्थानों में से एक है जहां से कुमाऊं के बाकी शहरों से अल्मोड़ा, पिथौरागड़, नैनीताल, हल्द्वानी आदि सड़क मार्ग से जुड़ा है। और हवाई मार्ग से जाने वालों के लिए 175 किमी दूर पंत नगर सबसे निकटतम का हवाई अड्डा है।



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