उत्तराखंड के कुमाऊं में दूनागिरि शक्तिपीठ दूसरी वैष्णो देवी माता मंदिर का रूप है।
द्वाराहाट (अल्मोड़ा) उत्तराखंड में अनेक पौराणिक एवं सिद्ध शक्तिपीठ हैं। उन्हीं शक्तिपीठों में से एक माँ दूनागिरी
वैष्णवी रूप में पूजी जाती है। कि वैष्णो देवी के बाद उत्तराखंड के कुमाऊं में दूनागिरि दूसरी वैष्णो शक्तिपीठ है। मंदिर में
अखंड ज्योति का जलते रहना इसकी एक विशेषता है। माता का वैष्णवी रूप होने से यहां किसी
प्रकार की बलि नहीं चढ़ाई जाती। मंदिर में अर्पित किया गया नारियल भी परिसर में नहीं
फोड़ा जाता है। लोगों को विश्वास है कि माँ वैष्णवी संतान प्राप्ति हेतु मंदिर में
अखंड दीपक जलाकर तपस्या करने वाली महिला को पुत्र रत्न प्रदान करती हैं। मनोकामना पूरी
होने पर श्रद्धालु मंदिर में सोने और चांदी के छत्र, घंटियां, शंख चढ़ाते हैं।
मान्यता है कि राम-रावण युद्ध के वक्त के समय जब लक्ष्मण को मूर्च्छा लगी थी, तब संजीवनी बूटी की तलाश में हनुमान द्रोणागिरि पर्वतको ही उठा ले गए थे तो पहाड़ी से दो शिलाएं गिर गई। इनका ब्रह्मचरी नाम पड़ गया। 1238 ईसवी में कत्यूर वंशीय राजा सुधारदेव ने मंदिर का लघु निर्माण कर मूर्ति स्थापित की।तब से ही इसे दूनागिरि के नाम से जाना जाता है। यहां विभिन्न प्रकार की जीवनदायिनी जड़ी, बूटियां भी मिल तीहैं। वर्षभर देश, विदेश के सैकड़ों सैलानी पहुंचते हैं। योग, अध्यात्म के लिए भी यह स्थल काफी उपयुक्त है।आदि शक्ति मां दूनागिरि मंदिर ट्रस्ट भी व्यवस्थाओं को सही ढंग से निभा रहा है।नियमित भंडारे की व्यवस्थाभी होती है।
कैसे पंहुचा जाये
मंदिर से हिमालय श्रंखलाओं के भव्य दर्शन होते हैं। यहाँ आने के लिए आप सड़क या रेल मार्ग के दारा पहुँच सकते है । यहाँ का निकतम रेलवे स्टैशन काठगोदाम 80 km है पर्यटन नगरी रानीखेत से 40 km , द्वाराहाट से 14 km दूर कर्णप्रयाग मोटर मार्ग पर स्थित दूनागिरि मंदिर सड़क से 800
फीट की ऊंचाई पर स्थित है। वहां जाने के लिए मंगलीखान तक वाहनों पहुंचते हैं।
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